हर ख़ुशी में कोई कमी सी है.... हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है हँसती आँखों में भी नमी-सी है दिन भी चुप चाप सर झुकाये था रात की नब्ज़ भी थमी-सी है किसको समझायें किसकी बात नहीं ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई गर्द इन पलकों पे जमी-सी है कह गए हम ये किससे दिल की बात शहर में एक सनसनी-सी है हसरतें राख हो गईं लेकिन आग अब भी कहीं दबी-सी है -जावेद अख़्तर