हम कहाँ पे आ गये हैं

जीवन के सफर में हम कहाँ पे आ गये हैं?  तपते हुए डगर में हम गमों को पा गये हैं!  पिघल रही हैं हसरतें पलकों में हऱ घड़ी,  मंजिलों की चाह में जख्मों को खा गये हैं!

Related News