हम अपना फर्ज निभा बैठे

क्या उनसे आँख लड़ा बैठे एक उम्र का रोग लगा बैठे बेताबी ऐ दिल कुछ और बढ़ी जब उनको पास बुला बैठे कुछ दर्द का दीदार हो न सका हम दिल के दाग दिखा बैठे हर दर पर अब रुसवाई है क्यों दिल का हाल सुना बैठे कि वो बाजी इश्क में जीत गए हम दौलत ऐ होश गवां बैठे अब उनकी शर्तें वफ़ा जाने हम अपना फर्ज निभा बैठे

Related News