गुलज़ार त्रिवेणी- पार्ट3

गुलज़ार त्रिवेणी- पार्ट3...

17. चूड़ी के टुकड़े थे,पैर में चुभते ही खूँ बह निकला नंगे पाँव खेल रहा था,लड़का अपने आँगन में

बाप ने कल दारू पी के माँ की बाँह मरोड़ी थी!

18. चाँद के माथे पर बचपन की चोट के दाग़ नज़र आते हैं रोड़े, पत्थर और गु़ल्लों से दिन भर खेला करता था

बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं!

19. कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं आँख के शीशे मेरे चुटख़े हुये हैं कब से 

टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले हैं मुझ को!

20. कोने वाली सीट पे अब दो और ही कोई बैठते हैं पिछले चन्द महीनों से अब वो भी लड़ते रहते हैं

क्लर्क हैं दोनों,लगता है अब शादी करने वाले हैं

21. कुछ इस तरह ख्‍़याल तेरा जल उठा कि बस जैसे दीया-सलाई जली हो अँधेरे में

अब फूंक भी दो,वरना ये उंगली जलाएगा!

22. कांटे वाली तार पे किसने गीले कपड़े टांगे हैं ख़ून टपकता रहता है और नाली में बह जाता है

क्यों इस फौ़जी की बेवा हर रोज़ ये वर्दी धोती है।

23. आओ ज़बानें बाँट लें अब अपनी अपनी हम न तुम सुनोगे बात, ना हमको समझना है।

दो अनपढ़ों कि कितनी मोहब्बत है अदब से

24. नाप के वक्‍़त भरा जाता है ,रेत घड़ी में- इक तरफ़ खा़ली हो जबफिर से उलट देते हैं उसको

उम्र जब ख़त्म हो ,क्या मुझ को वो उल्टा नहीं सकता?

25. तुम्हारे होंठ बहुत खु़श्क खु़श्क रहते हैं इन्हीं लबों पे कभी ताज़ा शे’र मिलते थे

ये तुमने होंठों पे अफसाने रख लिये कब से?

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