गुलज़ार त्रिवेणी- पार्ट2

गुलज़ार त्रिवेणी- पार्ट2  

9. बे लगाम उड़ती हैं कुछ ख्‍़वाहिशें ऐसे दिल में ‘मेक्सीकन’ फ़िल्मों में कुछ दौड़ते घोड़े जैसे।

थान पर बाँधी नहीं जातीं सभी ख्‍़वाहिशें मुझ से।

10. तमाम सफ़हे किताबों के फड़फडा़ने लगे हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में!

कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!!

11. कभी कभी बाजा़र में यूँ भी हो जाता है क़ीमत ठीक थी,जेब में इतने दाम नहीं थे

ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था।

12. वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर इक दिन जो मुड़ के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ न था

फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं।

13. वह जिस साँस का रिश्ता बंधा हुआ था मेरा दबा के दाँत तले साँस काट दी उसने

कटी पतंग का मांझा मुहल्ले भर में लुटा!

14. कुछ मेरे यार थे रहते थे मेरे साथ हमेशा कोई साथ आया था,उन्हें ले गया,फिर नहीं लौटे

शेल्फ़ से निकली किताबों की जगह ख़ाली पड़ी है!

15. इतनी लम्बी अंगड़ाई ली लड़की ने शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा

छाले जैसा चांद पडा़ है उंगली पर!

16. बुड़ बुड़ करते लफ्‍़ज़ों को चिमटी से पकड़ो फेंको और मसल दो पैर की ऐड़ी से ।

अफ़वाहों को खूँ पीने की आदत है।

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