गुलज़ार त्रिवेणी- पार्ट1

गुलज़ार त्रिवेणी- पार्ट1 

1. मां ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने

रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे

2. सारा दिन बैठा,मैं हाथ में लेकर खा़ली कासा(भिक्षापात्र) रात जो गुज़री,चांद की कौड़ी डाल गई उसमें

सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।

3. सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर

कल का अख़बार था,बस देख लिया,रख भी दिया।

4. शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को

तिनकों का मेरा घर है,कभी आओ तो क्या हो?

5. ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी

खुदा से कहिये,कभी वो भी अपने घर आयें!

6. लोग मेलों में भी गुम हो कर मिले हैं बारहा दास्तानों के किसी दिलचस्प से इक मोड़ पर

यूँ हमेशा के लिये भी क्या बिछड़ता है कोई?

7. आप की खा़तिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के!

चाँद चुभ जायेगा उंगली में तो खू़न आ जायेगा

8. पौ फूटी है और किरणों से काँच बजे हैं घर जाने का वक्‍़त हुआ है,पाँच बजे हैं

सारी शब घड़ियाल ने चौकीदारी की है!

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