गुज़र जाती है सारी ज़िंदगी

बढ़ाता है तमन्ना आदमी आहिस्ता आहिस्ता, गुज़र जाती है सारी ज़िंदगी आहिस्ता आहिस्ता । सफ़र में बिजलियाँ हैं, आंधियाँ हैं और तूफ़ाँ हैं, गुज़र जाता है उनसे आदमी आहिस्ता आहिस्ता । परेशाँ किसलिए होता है ऐ दिल बात रख अपनी गुज़र जाती है अच्छी या बुरी आहिस्ता आहिस्ता । इरादों में बुलंदी हो तो नाकामी का ग़म अच्छा, कि पड़ जाती है फीकी हर ख़ुशी आहिस्ता आहिस्ता ।

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