दीपक तू निश्चल होकर जल है अंधकार का मन विह्वल घनघोर रात्रि मे साथ न दे जब नैनो की ज्योति एक पल तब तू ही तो आशा बनकर कर देता है सबका पथ उज्जवल तू माटी के घर मे अपने करने बैठा सबका मंगल जब और यहा दस्तक देगी तब होगी राख बची केवल तू धन्य है देह तपाकर अपनी कैसे जलता है यू अविरल दीपक तू निश्चल होकर जल