मेरी हंसी है किसलिये कैसे कोई न जान पाये दूर से ही सही पर याद कर तुम मुस्कुराये ।। गवाह हैं ये हिचकियॉ देखती रहती हूं राहें लौट आओ ओ ! प्रवासी वे मिलन के तीर उपवन दे रहे मन को उदासी ।। गवाह हैं ये सिसकियॉ दर्द सहकर मौन रहकर तम के घने साये में रहकर याद कर आती हंसी अब जो गये थे मौन कहकर ।। गवाह हैं वे नजदीकियॉ कवयित्री कमलेश कौशिक