भेड़ चाल पर चलने की नहीं गांधी में झांकने की है जरूरत

हमारे देश में अधिकांशतः लोग एक किस्म की भेड़ चाल चलते हैं। यह भेड़ चाल हिंदी सिनेमा में हो, सामाजिक मान्यता में हो या फिर राजनीतिक रूप से हो। मगर हर कोई इसी पर चलना पसंद करता है। लीक से हटकर बातें करने की हिमाकत कुछ ही लोग कर पाते हैं। ऐसी ही भेड़ चाल हाल ही में बयानबाजियों को लेकर चली जा रही हैं। लगातार नेता विवादास्पद बयानबाजियां कर रहे हैं। जिससे राजनीतिक माहौल गर्मा रहा है। नेताओं द्वारा अपने बयानों को उछालने की बातें संभवतः पब्लिसिटी का एक हिस्सा भी हो सकती हैं।  ऐसे ही कुछ बयान हाल ही में जारी हुए हैं। जी हां, भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने कुछ समय पूर्व ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट बताया वहीं हाल ही में साध्वी प्राची ने महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट कहा। मगर वास्तव में तो यह भारतीयता का ही अपमान हुआ। जिसे महान विभूति को हम राष्ट्रपिता का दर्जा देते आए हैं उसे हमने ब्रिटिश एजेंट कहा है। विदेशों में गांधी प्रतिमाओं का अनावरण हो रहा है तो हम प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने को कोस रहे हैं।  विदेशी धरती पर गांधी के अहिंसा, स्वावलंबन को अपनाया जा रहा है तो हम गांधी के सभी सिद्धांतों को नकारने में लगे हैं। अब तो भारत में महात्मा गांधी द्वारा अपनाए गए हड़ताल और असहयोग के आंदोलन को भी गलत तरीके से लिया जाने लगा है। संगठनों की मांगे नहीं मानी गईं तो झट हड़ताल कर दी जाती है इस हड़ताल की आड़ में तोड़फोड़ को अंजाम दिया जाता है मगर हम महात्मा गांधी के इन सिद्धांतों से कोसो दूर जा रहे हैं।  आज राजनीति से प्रेरित होकर महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट तक कहा जाने लगा है। हालांकि महात्मा गांधी के सिद्धांत और आजादी के लिए संघर्ष का रास्ता अलग था। मगर यह कहना ठीक नहीं है कि वे ब्रिटिश महारानाी और वायसराय के ईशारों पर चला करते थे। महान क्रांतिकारियों के त्याग की महात्मा गांधी के समर्पण से तुलना करना अच्छा नहीं है। इन सभी का बलिदान अतुलनीय था। जिसे किसी भी तराजू में तौला ही नहीं जा सकता। दरअसल कई क्रांतिकारी ऐसे थे जो प्रारंभ में मोहनदास करमचंद गांधी के साथ जुड़े थे। यही नहीं इन्होंने गांधी की लहर से प्रेरित होकर उनके आंदोलनों में भागीदारी भी की थी। ऐसे कई क्रांतिकारी थे रास्ते अलग होने के बाद भी महात्मा गांधी का सम्मान करते थे।  
आजादी प्राप्त करने के बाद महात्मा गांधी ने स्वयं ही कांग्रेस को समाप्त करने की बात कही थी। उनका कहना था कि कांग्रेस के गठन का उद्देश्य केवल स्वतंत्रता प्राप्त करने तक ही था। स्वतंत्रता के बाद इसका किसी तरह से राजनीतिक दुरूपयोग न हो मगर तत्कालीन नेताओं ने महात्मागांधी की बातों को दरकिनार कर दिया और परिणाम अच्छे नहीं रहे। जिस गांधी ने देश को चरखे और सूत के माध्यम से स्वावलंबन की शिक्षा दी, जिस गांधी ने युवाओं को सत्य और अपरिग्रह की शिक्षा दी। जिसने युवाओं को यह बताया कि सीमित संसाधनों में किस तरह से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है वह गांधी आखिर ब्रिटिश एजेंट कैसे हो सकते हैं। भविष्य में यह मसला गंभीर विवाद को जन्म दे सकता है। 

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