मृग-से सुंदर नैन हैं, ओष्ठ-अरुण-अंगार। यौवन के हर पोर से, फूटे मधु की धार। फूटे मधु की धार, तार उर के झंकृत कर। कुंचित-काले-केश, झूमते अहि से कटि पर।। अधरों पर मुसकान और शर बरसें दृग से। सिरजाएँ हिय-नेह, चक्षु ये चंचल मृग-से।।