निर्भया के पांच साल: दरिंदगी में 277 फीसदी का इज़ाफ़ा

पांच साल हो गए है निर्भया को, न्याय के इंतज़ार को, देश की अस्मिता की लूट को, कानून से होते खिलवाड़ को, चीख के बाद की चुप्पी को, दरिंदो के बढ़ते गुरुर को, भारतीय नारी की बेबसी और लाचारी की परीक्षा को. निर्भया की मौत के बाद देश में कई निर्भया पैदा हुई. राजधानी दिल्ली में हर दिन तीन निर्भया पैदा हो रही है. आकड़ो की भयावहता शायद अभी भी आँखे मूंदे बैठी कानून व्यवस्था को जगाने में नाकाम है.

जिस देश में पिछले पांच साल में जीडीपी सात फीसदी भी दर्ज नहीं की गई वहीं सिर्फ राजधानी में दरिंदगी में 277 फीसदी का इज़ाफ़ा दर्ज किया गया है. क्या दिल्ली, बिहार, उत्तरप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र और क्या मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, असम. सिर्फ दिन, समय, जगह, और दरिंदगी के चेहरे बदलते है. नहीं बदलती तो बस मासूम, बेबस, लाचार निर्भया.

सुनसान सड़को पर आये दिन मिलने वाले लहू से सने अंतर्वस्त्र चीख-चीख कर कह रहे है कि, जिस देश में नारी की पूजा देवी मानकर की जाती रही है. जहाँ पराई स्त्री की अस्मिता बचाते हुए कोई अनजान अपनी जान से खेल जाता है. उसी भारत-वर्ष में देश की आबादी की आधी भागीदार निर्भया खुद के घर में ही महफूज़ नहीं है.

 

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