आंकड़े खुद दर्शा रहे है, राज्य की कमजोर शिक्षा नीति को

देश के कई राज्य आज भी ऐसे है, जिनकी स्थापना के वर्षों बीत चुके है, परन्तु फिर भी वे शिक्षा जैसे अहम् क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं. आज हम आपको उत्तराखंड से जुड़ी शिक्षा संबंधी जानकारी प्रदान कर रहे हैं. उत्तराखंड की स्थापना वर्ष 2000 में हुई थी. राज्य ने अपनी स्थापना के 17 वर्ष पूर्ण कर लिए है. लेकिन राज्य आज भी शिक्षा की बुनियादी नीव में बहुत कमजोर और पिछड़ा हुआ हैं. शिक्षा ही नहीं बल्कि, राज्य शिक्षा से जुड़ी हर व्यवस्था जैसे कि प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पेयजल, शौचालय और बिजली की समुचित व्यवस्था से भी वंचित हैं.

 प्राइमरी के 2954 विद्यालयों में बिजली, 562 में पानी, 920 में शौचालय नहीं तो अपर प्राइमरी के 421 स्कूल बिजली, 171 पानी और 252 स्कूल शौचालय विहीन हैं, स्कूलों में संसाधनों की कमी के अलावा बच्चों को शिक्षा देने वाले शिक्षकों की भी भारी मात्रा में कमी हैं. राज्य की स्थापना से लेकर अब तक प्रदेश में निर्वाचित चार सरकारें काबिज हो चुकी हैं जिनमें दो बार कांग्रेस और दो बार भाजपा की सरकार बनीं. लेकिन शिक्षा के हालात जस के तस बने हुए हैं.

राज्य में 12,539 सरकारी प्राइमरी स्कूल संचालित हो रहे हैं जिसमें 4,20,239 बच्चे पंजीकृत हैं. इसके अलावा सहायता प्राप्त, निजी एवं अन्य विद्यालयों में पढ़ने वाले 6,62,675 बच्चों की संख्या जोड़ लें तो इनकी संख्या 10 लाख 82,914 पहुंच जाएगी. इसी तरह कक्षा छह से आठ तक के सरकारी अपर प्राइमरी स्कूलों में बच्चों की स्थिति देखें तो उनमें 2,61,816 बच्चे पंजीकृत हैं और सहायता प्राप्त, निजी एवं अन्य विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 3,34,564 है.

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