शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले..

आतंक को न दे पनाह तू, कि ये ज़ख्म नासूर बन जाएगा। 
जो बोएगा बबूल तो कांटों का ताज़ ही पाएगा।। 
 
जी हां, आतंक को पनाह देने वाले पाकिस्तान के लिए कुछ ये पंक्तियां ही सही साबित हो सकती हैं। बरसों से हिंदूस्तान की धरती पर आतंक को धकेल कर शांति की धरती को रक्त रंजीत करने की साजिशें रचने वालों को हर बार भारतीय रणबांकुरों से मुंह की खानी पड़ती है और हर बार पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी और पाकिस्तान की सेना पीठ दिखाकर भाग खड़ी होती है।
 
पाकिस्तान के दांत खट्टे करने वाले इन्हीं जांबाज वीरों में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन इन्हीं वीरों में से एक हैं। मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का जन्म 15 मार्च 1977 को हुआ। उन्होंने नेशनल स्क्युरिटी गार्ड के स्पेशल एक्शन ग्रुप का दायित्व संभाला और आखरी सांस तक दुश्मन से लड़ते रहे। मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को उनके योगदान के लिए अशोक चक्र दिया गया।
 
मगर उनका बलिदान किसी भी मैडल, चक्र और श्रद्धांजलियों से तौले जाने से कहीं अधिक बढ़कर है। अशोक चक्र शांतिकाल में दिया जाने वाला सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। संदीप उन्नीकृष्णन का जन्म बेंगलुरू के नायर परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम धनलक्ष्मी उन्नीकृष्णन था। उनके पिता जी इसरो के सेवानिवृत्त अधिकारी के. उन्नीकृष्णन हैं। संदीप उन्नीकृष्ण अपने माता पिता की इकलौती संतान हैं। 
 
उन्होंने बेंगलुरू के फ्रेंक एंथोनी पब्लिक स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने वर्ष 1995 में विज्ञान विषय का अध्ययन भी किया। उन्होंने अपने शैक्षणिक जीवन के समय में ही सेना ज्वाॅइन करने का विचार कर लिया था। वे अपने समय के शानदार एथलीट भी थे। 
 
सैन्य कैरियर 
 
संदीप उन्नीकृष्णन ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, पुणे में भर्ती होकर अपने सैन्य कैरियर की शुरूआत की। इस दौरान उन्होंने वर्ष 1995 में आॅस्कर स्क्वाड्रन जाॅइन किया। उन्होंने एनडीए में 94 वां कोर्स किया। उन्होंने कला विषय में स्नातक किया। अपने शानदार पासिंग आउट के बाद उन्होंने 7 वीं बटालियन बिहार रेजीमेंट में नियुक्ति पाई। इसके बाद वे जम्मू कश्मीर, राजस्थान में पदस्थ रहे। उन्होंने नेशनल सिक्युरिटी गार्ड जाॅइन किया। 
 
जब अचानक 26 नवंबर 2008 को टेलिवजन सेट्स पर यह खबर आई कि आतंकियों ने मुंबई के होटल ताज और ओबेराॅय पर हमला कर दिया है तो इस दौरान मुंबई पुलिस के साथ आतंकियों के विरूद्ध किए गए आॅपरेशन में उन्होंने एनएसजी की ओर से योगदान दिया। इस दौरान उन्होंने अपने साथी कमांडो सुनिल यादव के साथ मिलकर आतंकियों द्वारा होटल के रूम में घुसने के बाद भी साहकिसकरूप से आतंकियों का सामना किया और अपने प्राण मातृभूमि के लिए न्यौछावर कर दिए।

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