एक नज़र इधर भी

झांकती छज्जों से थीं कुछ,मनचली सी लड़कियाँ **एक नज़र इधर भी** अधखुले से द़र थे उनके,  अधखुली थीं खिड़कियाँ..!  झांकती छज्जों से थीं कुछ,मनचली सी लड़कियाँ..!! छेंड़ते उनको दिखे कुछ,  भँवरें जैसे मनचले,  साथ उनका दे रही थीं,फिर मुस्करा कर तितलियाँ..!! जिस्म का बाजार था,  अस्मत बिकाऊ थी,  अश्लील हरक़त कर वहाँ,सब करते थे अय्याशियाँ.!! खुद को कहती थी तबायफ,  दिलरुबा के नाम से,  मर्दों को बद्जात कह कर,बरपा रही थी धमकियाँ,,!! वो भी कोई मर्द था,  जो बेच कोठे पर गया,  "वीरान" कर दी जिसने उनकी,उम्रभर की मस्तियाँ..!! 

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