एक नदी सी लड़की -देवेंद्र

एक नदी सी लड़की....

एक नदी सी लड़की, जो सड़क पर बहती है, मैं उसकी निगाहों से, धो लेता हूँ अपना चेहरा और हथेली से तोड़ लेता हूँ कुछ, बूंदों के गीले दाने  जिनसे मिटा लेती है, मेरी प्यासी उँगलियाँ अपनी प्यास.!

बहती हुई लड़की में रहती है ख़्वाहिशों की अनंत मछलियां जो तैरती रहती है, मन के इस छोर से, तन के उस छोर तक, उन मछलियों में से एक मछली की शक्ल, मेरे ख़्वाबों से मिलती है इस लिए वो नदी सी लड़की, जब भी गुज़रती है, मुझसे गुज़रती है.!

मन से तन के, दोनों किनारों के बीच, मैं बहा देता हूँ अपना नाम, वो होंठों से चूम के, कर देती है मुझे नीला और मैं, घुल जाता हूँ रंग सा मेरा नीलापन,नदी के नीलेपन की परछाई से, प्रेम का संकेत है..!

और उस बहती हुई लड़की के लिए, बहते रहना ही, प्रेम में रहना है.!

-Devendra Ahirwar

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