इक अंश कोख मे दे गए थे साहब

अब तक आपके दिए छाले है साहब, हम तो उन्हीं ग़मो मे मतवाले है,,,,,,, जिंदा है उन्ही यादों मे सुख की छाँव खुशियों से ही खिलखिलाते है,,,,,,, लोग पागल समझ के मारते है साहब, विक्षिप्त हो के आप के दीवाने है,,,,,, भूल गए जा के आलिशान घरो मे कि इक अंश कोख मे दे गए थे साहब

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