ऐ सावन की मदमस्त बहारों

ऐ सावन की मदमस्त बहारों उन तक पहुंचाना मेरा ये पयाम, छुकर उनके गालों को  कान मे धिरे से कहना उनके...! कहना के धडकने लगा है दिल उनका मेरे सिने में दिल बनके, चलने लगी है सांसे अब जो दफन थी मेरे साथ इस कब्र में.., अरसे से बंजर जो पड़ी थी इस जख्मी - दिल की जमीन....!!! मुझपे भी अब छाने लगी है वर्षा के शबनमी बूँदों की खुमारी.., फिर से हरा हो गया कब्रिस्तान, मिला दिल को तरवर सा आयाम...! ऐ सावन की मदमस्त बहारों उन तक पहुंचाना मेरा ये पयाम.!!!

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