दुश्मनों से भी तेरा पैगाम लेते हैं

मुहब्बत में निगाहों से जुबां का काम लेते हैं  अगर हों रूबरू महबूब तो दिल थाम लेते हैं बड़ी जादूगरी है आजकल उनकी अदाओं में  हमारे लब,जिगर दिल सब उन्हीं का नाम लेते हैं न पूछो आजकल कैसे गुजरती है मेरी रातें  मिले जो दुश्मनों से भी तेरा पैगाम लेते हैं तुम्हारी याद ने मुश्किल किया है आजकल जीना  मगर हम हर सितम तेरा समझ ईनाम लेते हैं नहीं आसान ये इतना समझ लो आशिकी करना  गवां कर हर खुशी खुद पे सनम इलज़ाम लेते हैं

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