दिल लगाने का सलीका

क्यों न एक बज़्म, मोहब्बत की सजाई जाए..! साथ चाहत वहाँ नफरत भी बुलाई जाए..!! दिल लगाने का सलीका, तो सभी को आता, दिल..लगानें की जरुरत भी बताई जाए..!! बा-वफा को निजात, गम से थोड़ी मिल जाए, बे- वफा है तो मुरव्वत भी सिखाई जाए..!! इश्क़ में जिन्हें, नफरत मिली या रुस्वाई, दर्दे-दिल से उन्हें राहत भी दिलाई जाए..!! लूट लेने का हुनर, उनमें कहाँ से आया,  हुस्नवालों की नज़ाक़त भी दिखाई जाए..!! पी रहा होगा ज़हर, देखो कहीं पर बैठा, प्यासे"वीरान"में उल्फत भी जगाई जाए..!! 

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