इंकार ही सही दिल दुखाने के लिए आ , मुझे अकेला छोड़कर जाने के लिए आ ! मौसम की सुनहरी जो बात करते है लोग , उन्हें अपना माहताब दिखाने के लिए आ ! हो गई है शाम प्रिय ना हो कोई काम प्रिय , तो फिर घने जुल्फे लहराने के लिए आ ! मेरा दर्द ना सही प्रिय तो कोई फर्क नही , मेरी माँ से मिलकर लुभाने के लिए आ ! ना पडा है कानों में मुद्दत से तरन्नुम कोई , तू बस मौसिकी गुनगुनाने के लिए आ ! बेरंग हो चुके मौसम की है बात प्रिय अब , गुलाबों के साथ तू मुस्कुराने के लिए आ ! है यकीं नही मुझ पर खुदा सा हबीब तो , दे जहर मुझको आजमाने के लिए आ ! कोयल सी अपनी बोली को तुम हबीब , बागों में पंछी से सुर मिलाने के लिए आ ! जो निकले थे हम तेरे दीदार को ए सनम , मंदिर रोज रोज के बहाने के लिए आ ! मौसम ए हालात पर खौर फ़रमा ए हबीब , हो रही बारिश कपडे छुपाने के लिए आ ! हुआ है 'कुमार' बेजार तुम बिन जाने क्यूं , चिलमन नूर से हटा तड़पाने के लिए आ !