धूल की फ़ितरत ही बदल गई

कल तक *उड़ती* थी जो मुँह तक, आज पैरों से *लिपट* गई । चंद बूँदे क्या *बरसी* बरसात की,  धूल की *फ़ितरत* ही बदल गई...

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