सिंहस्थ के कारण बदल रही उज्जैन की दिशा और दशा

उज्जैन : उज्जैन धर्म संस्कृति एवं कला की नगरी कही जाती है वहीं भूत भावन भगवान महाकाल उज्जैन में विराजमान होकर भक्तों की मनोकामना को पूरा करते है। लेकिन इस नगर का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि न तो यहां उद्योग धंधे पनपते है और न ही नगर के विकास की दरकार पूरी होती है। वैसे सिंहस्थ ही एक मात्र ऐसा आयोजन होता है जब 12 वर्षों में नगर का विकास कार्य दिखाई देता है। रही बात इस बार के सिंहस्थ की तो निश्चित ही पिछले सिंहस्थों के मुकाबले इस सिंहस्थ मेें विकास के द्वार खुल गए है। चारों और विकास की बयार बह रही है, कहीं सड़कों का निर्माण कार्य हो रहा है तो कहीं पुल बनते हुए दिखाई दे सकते है तो कहीं चौराहों का सौंदर्यीकरण का कार्य धड़ल्ले से किया जा रहा है। कुल मिलाकर इस सिंहस्थ ने तो उज्जैन नगर की दिशा और दशा ही बदल दी हो जैसे...।

उज्जैनवासियों ने कभी कल्पना नहीं की होगी कि उज्जैन ऐसा भी दिखाई दे सकता है....। मार्ग चौडे किए जा चुके है तथा सेंटर लाईटों से मार्ग जगमगा रहे है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारा धार्मिक नगर महानगर बन गया हो.....। खैर सिंहस्थ के दौरान अधिकांष कार्य स्थाई तौर पर हुए है, जिन्हें अगले बारह वर्षों तक याद रखा जाएगा, लेकिन अमुमन कार्यों के निर्माण कार्यों की मंथर गति चिंता का भी विषय बनी हुई है।

सिंहस्थ के लिए पूरा नगर तैयार हो रहा है...इसमें कोई दोराय नहीं है वहीं आने वाले लाखों आस्थावानों की व्यवस्था के लिए भी प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा योजना बनाने का कार्य दू्रत गति से जारी है। बस जरूरत अब इस बात की रहेगी कि कथनी और करनी में किसी तरह से अंतर न दिखाई दे....। सिंहस्थ के नाम पर करोड़ो रूपए खर्च किए जा रहे है..सवाल उठे हैं और आगे भी उठते रहेंगे, जवाब देना सरकार के साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में हैं।

शीतलकुमार ’अक्षय’; उज्जैन ब्यूरो

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