मौसम को इशारों से बुला क्यों नहीँ लेते रुठा है अगर वो तो मना क्यों नहीँ लेते..... दीवानी तुम्हारी हूँ कोई गैर नहीँ हूँ मचली हूँ तो सीने से लगा क्यों नहीँ लेते... तुम जाग रहे हो मुझे अच्छा नहीँ लगता चुपके से मेरी नींदें चुरा क्यों नहीँ लेते..... ख़त लिख के और कभी ख़त को जला कर तन्हाई को रंगीन बना क्यों नहीँ लेते....... मौसम को इशारों से बुला क्यों नहीँ लेते.