पुण्यतिथि: जब एक वैश्या से हार गए स्वामी विवेकानन्द !

भारतीय युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की आज पुण्य तिथि है. 4 जुलाई 1902 को उनका बेलूर में निधन हो गया था. देश के युवाओं में अपने ओजस्वी विचारों से हमेशा जोश भरने वाले विवेकानंद के जीवन में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे प्रेरणा लेकर हम अपना जीवन संवार सकते हैं. उनकी पुण्य तिथि के अवसर पर उनके जीवन की एक ऐसी ही एक घटना का जिक्र हम यहां कर रहे हैं जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी डायरी में किया था. इस घटना से उन्हें तटस्थ रहने का ज्ञान मिला था, जिसका आशय था आपका मन दुर्बल और असहाय है इसलिए पहले से कोई दृष्टिकोण तय मत करो.

यह बात उस समय की है जब अमेरिका जाने से पहले स्वामी विवेकानन्द जी जयपुर के महाराजा के महल में रुके थे. कुछ दिनों बाद जब उनकी विदाई का वक्त आया तो राजा ने उनके लिए एक स्वागत समारोह रखा. इसमें वैश्याओं को भी बुलाया गया था. शायद राजा यह भूल गए कि एक संन्यासी का स्वागत वैश्याओं के जरिये कराना ठीक नहीं है. विवेकानन्द उस समय अपरिपक्व होकर पूरे संन्यासी नहीं बने थे. जैसे ही वैश्या स्वामी जी के कमरे के बाहर पहुंची उन्होंने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

जब यह बात राजा तक पहुंची तो वे वहां आए और स्वामीजी से माफ़ी मांगकर निवेदन किया कि यह देश कि सबसे बड़ी वैश्या है यह ऐसी ही चली जाएगी तो अपमान होगा. आप बाहर आ जाएँ. स्वामी जी बाहर आने से डर रहे थे, तभी वैश्या ने रोते हुए एक संन्यासी गीत गाया. जिसका अर्थ था कि मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूँ. तुम करुणामय हो सकते हो. मैं पापीऔर अज्ञानी हूँ और आप पवित्र आत्मा हो, आप मुझसे क्यों भयभीत हो.

विवेकानंद जी ने उसकी स्थिति को अनुभव किया और सोचा कि वे क्या कर रहे हैं, उनसे रहा नहीं गया और वे दरवाजा खोलकर बाहर आ गए. विवेकानंद एक वैश्या से हार गए. बाद में उन्होंने डायरी में लिखा ईश्वर से एक नया प्रकाश मिला. मैं डरा हुआ था. शायद कोई लालसा रही होगी भीतर. उस औरत ने मुझे हरा दिया. मैंने कभी नहीं देखी ऐसी विशुद्ध आत्मा...

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