दरिया की हवा तेज़ थी

दरिया की हवा तेज़ थी, कश्ती थी पुरानी रोका तो बहुत दिल ने मगर एक न मानी मैं भीगती आँखों से उसे कैसे हटाऊ मुश्किल है बहुत अब्र में दीवार उठानी निकला था तुझे ढूंढ़ने इक हिज्र का तारा फिर उसके ताआकुब में गयी सारी जवानी कहने को नई बात हो तो सुनाए सौ बार ज़माने ने सुनी है ये कहानी

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