आयुर्वेद से ठीक करें हेपेटाइटिस

बरसात आते ही जाइन्डिस और हेपेटाइटिस-बी के मरीज तेजी से बढ़ने लगते है. ऐसा जहां-तहां का पानी पीने और खान-पान में लापरवाही बरतने के कारण होता है. इनसे बचने के लिए खानपान पर ध्यान रखना जरुरी है. ज्यादा चिकनाईयुक्त खाना खाने से परहेज करें. यह सभी बीमारियों की जड़ है.

लक्षण- बुखार आना, आँख का पीलापन, भूख न लगना, कमजोरी, शरीर में खुजली होना, पैखाने का रंग बदलकर सफ़ेद हो जाना. लगातार गैस व कब्ज रहना.

बचाव- भृंगराज के एक चम्मच रस का सुबह-शाम सेवन. स्वस्थ लोग भी यदि सेवन करें तो यह फायदेमंद ही होगा. लिवर ठीक रहेगा.

गजपूर्णा का साग खाना चाहिए. गजपूर्णा का काढ़ा बनाकर पीना भी फायदेमंद है. भूमि आंवला के रस का सेवन भी कर सकते है. पानी उबालकर रख लें और उसका सेवन करें.

कारण- जाइन्डिस पर चर्चा करते हुए विशेषज्ञ कहते है की 1 या 1 से कम सिरम बिलरुबिन स्वस्थ शरीर में होता है. जाइन्डिस में यही बिलरुबिन बढ़ता जाता है. आयुर्वेद से उपचार कर 25 से 30 बिलरुबिन तक के मरीज को ठीक किया जा सकता है.

उपचार- जाइन्डिस और हेपेटाइटिस-बी दोनों यदि एक साथ किसी मरीज को हो तो उसे आयुर्वेद से ठीक करने में 4 से 5 महीने का समय लगता है. यदि सिर्फ हेपेटाइटिस-बी है तो यह क्रॉनिकल स्टेज होता है. इस स्थिति में पांच से छह महीने की दवा के बाद हर छह महीने पर एलएफटी चेक कराकर यह जांचना होता है की लीवर किस हाल में है. यदि लीवर ठीक है तो गजपूर्णा और भृंगराज का सेवन करना चाहिए. यदि कच्चा भृंगराज नहीं मिल रहा तो सुखी अवस्था में या चूर्ण के रूप में बाजार में यह उपलब्ध रहता है वहां से लेकर सेवन कर सकते है.

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