गायब हो जाएगा गेंहू-चावल ! वैज्ञानिकों ने दी डराने वाली चेतावनी

नई दिल्ली:  पिछले कुछ सालों में ग्लोबल वार्मिंग शब्द काफी बार सुना है और इसके दुष्प्रभावों पर भी काफी चर्चा हुई है. पीएम नरेंद्र मोदी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस खतरे से पूरे विश्व को आगाह कर चुके हैं. दरअसल, 2021 में ग्लास्गो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन हुआ था, जिसमें पीएम मोदी ने कहा था कि भारत वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने के टारगेट को हासिल कर लेगा. इसके मायने साफ थे कि दुनिया के तापमान को एक डिग्री कम किया जा सके. अब क्लाइमेट साइंटिस्ट्स ने फिर से चेतावनी दी है कि यदि इस मसले पर जल्द काम नहीं किया गया, तो भारत को खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है. इस चेतावनी को आप हल्के में नहीं ले सकते, क्योंकि गत वर्ष जिस प्रकार से मौसम ने करवटें बदली हैं वो इसी ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ही हुआ है.

वैज्ञानिकों ने वार्निंग दी है कि भारत में चिलचिलाती गर्मी और पल-पल बदलते मौसम की घटनाओं के पीछे निश्चित रूप से ग्लोबल वार्मिंग ही कारण हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग और मौसम विज्ञान संस्थान पुणे के वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि देश में लू (Heat Wave) की वजह से गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष 30 लाख टन गेहूं का उत्पादन कम हुआ है. इसका प्रमुख कारण है, मौसम का प्रतिकूल प्रभाव. ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम बार-बार अपना मिजाज बदल रहा है.

IITM के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा है कि, 'इन हीटवेव्स के पीछे एकमात्र वजह ग्लोबल वार्मिंग है. कोल ने सात दशकों के डेटा के जरिए निष्कर्ष निकाला कि हीटवेव की गंभीरता और आवृत्ति सीधे वार्मिंग ग्लोब से संबंधित थी. कई अध्ययनों के बाद अब भविष्यवाणी की है कि बारिश के पैटर्न में बड़े परिवर्तन, शुरुआती गर्मी में गर्म हवाएं देश के चावल और गेहूं के उत्पादन को खतरे में डाल सकती हैं. इस कारण अनाज में कमी आ सकती है. दूसरा प्रभाव इसका ये है कि भारत में कृषि आधी आबादी को रोजगार देती है और भारत की अर्थव्यवस्था में 18 फीसद की हिस्सेदार है.

बता दें कि पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में गेहूं के उत्पादन में गिरावट के साथ भारत में इस साल रिकॉर्ड पर सबसे गर्म मार्च दर्ज किया गया. इसके चलते अनाज की घरेलू कीमतों में लगभग 20 फीसद का इजाफा हुआ. बढ़ने दामों की वजह से सरकार को निर्यात पर रोक लगाना पड़ा. इंटरनेशनल फूड पॉलिसी की 2022 रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि उत्पादकता में गिरावट आने के कारण 2030 तक कई भारतीयों को अकाल का सामना करना पड़ सकता है.

कोल ने हाल ही में किए गए एक ऐतिहासिक अध्ययन में हिंद महासागर के ऊपर बढ़ते पारे, या महासागरीय गर्मी की लहरों का भी जिक्र किया गया है. जो मॉनसून के सर्किल को बदल रहा है. 2022 दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बिगड़ी स्थिति की वजह से वर्षा बहुत देर से हुई. इसके कारण चावल की बुवाई में चार फीसदी की गिरावट आई. सरकार ने संभावित कमी और उच्च अनाज मूल्य मुद्रास्फीति से निपटने के लिए विदेशी शिपमेंट पर बैन लगा दिया.

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से तापमान में वृद्धि होती जा रही है और इसके कारण तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सूखा और लू के खतरे की आशंका बढ़ जाती है. दरअसल, एक गर्म क्लाइमेट में वायुमंडल अधिक पानी एकत्र कर सकता है और भीषण अतिवृष्टि हो सकती है. जब से पूरे विश्व में औद्योगिक क्रांति हुई उसने अर्थव्यवस्था को तो सुधार दिया, मगर वायुमंडर को काफी नुकसान पहुंचाया. 1880 के बाद से औसत वैश्विक तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है. ग्लोबल वार्मिंग एक सतत प्रक्रिया है, वैज्ञानिकों को आशंका है कि 2035 तक औसत वैश्विक तापमान अतिरिक्त 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा और इसी को रोकने के लिए दुनियाभर के नेताओं ने ग्लास्गो में शपथ ग्रहण की थी.

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