जन्म से ही बच्चो में होता है 'सी एच डी' का खतरा

मेडिकल साइंस में तरक्की के बाद आजकल शिशु के जन्म के समय ही उसकी बिमारियों का पता लगाया जा सकता है. आज के समय में इकोकार्डियोग्राफी स्कैन्स, अन्य तकनीक जैसे पल्स ऑक्सीमीटर्स, स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञों और बाल रोग विशेषज्ञों द्वारा जांच से नवजातों में 'सी एच डी' का पता लगाया जा सकता है.

बता दे की बच्चों में दिल से संबंधित रोगों में र्यूमैटिक हार्ट डिजीज सर्वाधिक मामले पाए जाते है. इस बीमारी में शीशी के गले में संक्रमण हो जाता है और शरीर के जोड़ो में दर्द और सूजन की समस्या सामने आने लगती है. इसके अलावा ऐसे बच्चो के दिल पर भी काफी बुरा असर पड़ता है. 

इस समस्या के समाधान के तौर पर कुछ मेडिकल संस्थानों द्वारा प्रति 50 लाख की आबादी पर एक समर्पित और विशेष बाल चिकित्सा हृदय केंद्र की मांग की गयी है. वही भारत में इस समय कुल एक दर्जन से कुछ अधिक केंद्र ही मौजूद है. 

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