चेहरे पे रंग ए मलाल आ गया

हुई शाम उन का ख़याल आ गया वही जिंदगी का सवाल आ गया अभी तक तो होठों पे था, तबस्सुम का एक सिलसिला बहोत शादमां थे हम उनको भूला कर अचानक ये क्या हो गया के चेहरे पे रंग-ए-मलाल आ गया हमें तो यही था गुरूर, ग़म-ए-यार है हमसे दूर वही ग़म जिसे हमने किस किस जतन से निकाला था इस दिल से दूर वो चलकर कयामत की चाल आ गया

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