बुझे चराग़ में भी कुछ जला रखा है ज़िंदगी में क्या जाने मज़ा रखा है नहीं होता ज़ोर किसी का किसी पर रज़ा तेरी है मैने बुला रखा है मिले तो बेशक़ नहीं मुद्दत से हम मगर फिर भी कोई सिलसिला रखा है न सोचो ना समझो बस फ़ैसला दे दो चलन किसने सिक्कों का चला रखा है रहा ना कोई ताल्लुक़ तुमसे मेरा तेरे दर से फिर भी राबिता रखा है वफ़ा का इम्तेहान हो जाय इसी वक़्त इसीलिए आज यहाँ आईना रखा है मेरे हो तुम बस जी भर जाने तलक मोहब्बत का ये नाम नया रखा है