चंदा सूरज ढलते देखा

चंदा सूरज ढलते देखा बुझता दीपक जलते देखा हीरे की कोई कदर न जाने खोटे सिक्के चलते देखा जिसका जग मे कोई नहीं था वह यतीम भी पलते देखा लौकी आलू दाल न गलती पत्थर को भी गलते देखा उसकी रहमत बहुत बड़ी है उसकी हुकूमत चलते देखा जिसने रब की कद्र नहीं की  खाली हाथों मलते देखा

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