रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पढता है उसकी याद आयी है साँसों आहिस्ता चलो धड़कनो से भी इबादत में खलल पढता है - Rahat Indori