चल रे मन बंजारे चल

होकर भाव शून्य औ निश्छल चल रे मन बंजारे चल । चलना जीवन, रुकना मौत है झिलमिल तेरी घनी ज्योत है तन गाड़ी पर साँस ढो रहा कर्मों की तू फसल बो रहा । पी ले आज खुशी की मदिरा सोचे मत क्या होगा कल । चल रे मन बनजारे चल ।। दसों दिशाएं तेरा घर है थोड़े में ही गुजर बसर है साथ में मस्ती का खंजर है मुट्ठी में सारा मंजर है । घर परिवार सदा संग तेरे तेरा भुज ही तेरा बल । चल रे मन बंजारे चल ।। कैसी आश निराशा कैसी कर्मठता में हताशा कैसी अपनेपन में मस्त रहें हम दुनिया तेरी ऐसी तैसी । ऊपर वाले तक को कह दें आज नहीं तू मिलना कल । चल रे मन बंजारे चल ।।

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