चल ना सका आसमान से भी गया

ज़मीं पे चल ना सका आसमान से भी गया, कटा के सर वो परिंदा उड़ान से भी गया ! तबाह कर गयी पक्के मकान की ख्वाईश, मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया ! पराई आग में जल के भी क्या मिला मुझको, उसे बचा ना सका अपनी जान से भी गया ! भूलना चाहा तो उसकी भी इन्तेहाँ कर दी, वो शक़्स मेरे वहम-ओ-गुमां से भी गया ! किसी के हाथ से निकला हुआ वो तीर मैं, हदफ़ को छु ना सका पर कमान से भी गया !

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