चार दिन की चॉदनी है

चार दिन की चॉदनी है कर बहुत कुछ कर सकेगा फिर अंधेरी रात तम की तू बता क्या कर सकेगा ।। खुद ब खुद हद खत्म होंगी सुनकर तेरे कदमों की आहट इश्क के अंजाम तक क्या सब्र तू कुछ धर सकेगा ।। नाम की है फिक्र तुझको काम की चिन्ता नहीं रे ! दो नावों में चढकर के बोलो पार दरिया कर सकेगा ?? साथ उनका मिल| न पाया दिल ने चाहा था जिन्हें आसाढ ने आकर भिगोया मेघ फिर क्या कर सकेगा ?? वादियों में या शिखर पर घिर गये बादल निगौडे चॉद अब बे बस बिचारा चॉदनी क्या कर सकेगा ?? है नजर खंजर की तरहा खेल में कहीं भौंख न दे  इसलिये मंजिल तलक क्या कदम तू धर सकेगा ?? शर्मिन्दगी आती अगरचे छोड दे हैवानियत को बढती रही शैतानियॉ तो संहार वह निश्चित करेगा ।।

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