जातिगत आरक्षण अविलम्ब बंद होना चाहिए

संविधान निर्माताओं द्वारा आरक्षण इसलिए लाया गया था ताकि पिछड़ों को आगे लाकर समाज में समानता लाई जा सके और यह भी निर्णय लिया गया था कि तय अवधि के बाद इसे समाप्त कर दिया जायेगा लेकिन इसे अभी भी समाप्त नहीं किया गया | समाप्त करने की बजाय इसे दिनों-दिन बढ़ाया गया और इस पर राजनीति होने लगी | पहले पढ़ाई में आरक्षण, फिर नौकरी में अब प्रमोशन में भी आरक्षण ये क्या तमाशा है | आरक्षण की व्यवस्था जिसके लिए की गई है, उसका ज्यादा भला तो नहीं हुआ, लेकिन हाँ जातिवाद फैलाकर उसकी नैया पर सवार होकर राजनीति की वैतरणी पार करने वालों को जरुर फायदा हुआ है | कुछ लोगों ने भैसों का चारा खा गये, तो कुछ ने पार्कों में अपनी मूर्तियाँ सजवा लिये | देश में जो भी निम्नस्तर की राजनीति हुई, जितने भी निम्नस्तर के नेता पैदा हुए इसी जातिगत आरक्षण के नाम पर टिके रहे | अगर जातिगत आरक्षण बंद हो जाये तो इस पर राजनीति कर देश को बाँटने वाले नेताओं की दुकाने भी बंद हो जायेंगी |

भारत देश जब स्वतंत्र हुआ, उसके पहले ही संविधान में कुछ समूहों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में संवैधानिक रूप से सूचीबद्ध कर दिया गया था, उस समय के आधार पर संविधान निर्माण समिति का कहना था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ऐतिहासिक रूप से पिछड़े रहे हैं, उन्हें समाज में सम्मान और समान अवसर नहीं दिया गया है | इसी आधार पर संविधान का निर्माण हुआ तब संविधान निर्माण समिति ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को सरकारी प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की खाली सीटों, तथा सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों के लिए अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 7.5 प्रतिशत का आरक्षण रखा, साथ ही आर्टिकल 330 में लोकसभा और विधानसभा में भी इसकी जातीय जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण रखा गया | जो सिर्फ दस वर्षों के लिए था, इसके हालात की समीक्षा कर इसे ख़त्म किया जाना था यह निर्णय संविधान निर्माण समिति द्वारा लिया गया था | लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि आने वाली सरकारों द्वारा हमेशा अवधि बढ़ाती जाती रही है और 66 वर्ष हो गये देश अभी भी आरक्षण के बेड़ियों में जकड़ा हुआ है | बाद में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण शुरू कर दिया गया |

अब स्थिति यह है कि शिक्षा संस्थाओं और सरकारी नौकरियों के अलावा भी सरकारी सेवा में प्रोन्नति में भी आरक्षण लागू कर दिए, जबकि आरक्षण की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इन्द्रा शाहनी के केस में यह निर्देश दिये कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा और नौकरी में आरक्षण प्रवेश तक ही सीमित होगा अर्थात प्रमोशन पर लागू नहीं होगा क्योंकि नौकरी के बाद सभी सामान हो जाते हैं तब आरक्षण का सवाल ही नहीं रह जाता । राजनितिक तानाशाही के चलते संविधान में संशोधन करके आरक्षण को निरन्त बढ़ाया जा रहा है | भीमराव अंबेडकर और राममनोहर लोहिया जैसे राजनीतिक नेता और चिंतकों ने जाति पर आधारित आरक्षण को जातिव्यवस्था समाप्त करने के लिए इस्तेमाल करना चाहा था, उसे मजबूत करने के लिए नहीं, डॉ भीमराव अंबेडकर की तो एक पुस्तक का शीर्षक ही "जाति का संहार" है | लेकिन स्वतंत्रता के बाद का इतिहास बताता है कि पिछले छ: दशकों में जाति व्यवस्था टूटने के बजाय और अधिक मजबूत होती गई, और आरक्षण दिनों दिन बढ़ते ही जा रहा है, और इसकी मांग भी बढते ही जा रही है

आज देश की यह गंभीर समस्या बन चुकी है कि हर समुदाय हर धर्म को आज आरक्षण चाहिए, देश जातिगत आरक्षण के नाम पर बटते जा रहा है | संपन्न से संपन्न समाज को भी आज आरक्षण चाहिए | 1992 में सुप्रीम कोर्ट में इंद्रा शाहनी ने प्रमोशन में आरक्षण लागू करना असंविधानिक हैं, क्योंकि नौकरी लगने के बाद सभी सामान हो जाते हैं इस मुद्दे पर केस जीता था, केस नम्बर इंद्रा शाहनी बनाम यूओआई (2) SSC (L&S) 217 था, लेकिन कांग्रेस की सरकार ने 77 वें संविधान संशोधन में प्रमोशन में आरक्षण लागू कर दिया | फिर आर के सब्बरवाल मुददा, केस नम्बर था 1995 (2) SCC 795, जिसमें 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण न हो और बैकलाग भी इसी 50 प्रतिशत में से हो, इस मुद्दे पर भी केस जीता गया लेकिन बीजेपी की सरकार ने 81 वें संविधान संसोधन कर यह कहा कि 50 प्रतिशत की सीमा बैकलाग पर लागू नहीं होगी, भले ही 100 प्रतिशत सीटें ही क्यों न रिजर्व हो जायें | इसके बाद मुददा एस. विनोद कुमार का आया जिसने कोर्ट में अपील इस आधार पर किया कि प्रमोशन में योग्यता के मापदण्डों को छूट देना अवैध है और केस जीत लिया गया था, केस नम्बर विनोद कुमार बनाम यूओआई 1996 (2) SCC 1480 था, बीजेपी की सरकार ने संविधान के 82 वें संशोधन में प्रमोशन में योग्यता के मापदण्डों में छूट की इजाजत दे दी | इसे फिर से सुप्रीम कोर्ट में चनौती दी गई, माननीय उच्चतम न्यायालय नें 19 अक्टूम्बर 2006 को फैसला सुनाते हुये कहा कि प्रमोशन में आरक्षण कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है, लेकिन अब फिर इसके तहत संविधान संशोधन के प्रयास किया जा रहे हैं |

देश में जातिवाद आरक्षण के नाम पर राजनीति हो रही है, तभी तो आरक्षण लागू होने के 10 वर्ष बाद ही समाप्त हो जाना था, वो आज भी 66 वर्षों में भी समाप्त नहीं हुआ है और देश को दीमक की तरह अन्दर ही अन्दर खोखला कर रहा है | आरक्षण देश की अखंडता के विरुद्ध है, जब तक आरक्षण बंद नहीं होगा देश में ऐसे ही जातिवाद और आरक्षण के नाम पर हिंसा होती रहेगीं इसलिये आरक्षण को अविलम्ब बंद होना चाहिए | डॉ भीमराव अम्बेडकर ने भी 30 नवम्बर 1948 के अपने भाषण में कहा था कि समानता एवं आरक्षण में तालमेल बनाये रखने के आधार पर आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं की जा सकती, साथ ही उन्होंने कहा था कि इसका उदेश्य समाज में समानता लाना है, इसे अनन्त काल तक लागू नहीं किया जा सकता इसी को ध्यान में रखते हुये 10 वर्ष की अवधि तय की गई थी |

लेकिन आज तक किसी भी पार्टी ने या सरकार ने आरक्षण समाप्त करने का विचार तक नहीं किया, बल्कि समय के साथ इसे और ज्यादा बढ़ाया गया, आज आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक हो गयी, यही कारण हैं कि हर जाति हर वर्ग के लोग आरक्षण की मांग कर रहे हैं और आरक्षण के नाम पर आपस में ही विभाजन तथा विभेद पैदा हो रहा है | एक तरफ भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है तो दूसरी तरफ आरक्षण के नाम पर राजनीति करने वाले इसे बाँट रहे हैं | आरक्षण में खरगोश और कछुये की दौड़ वाला खेल खेला जा रहा है, प्रतिभा और हुनर का सीधे-सीधे शोषण हो रहा है, योग्यता को उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है | आरक्षण के कारण 80 फीसदी अंक लेकर आने वाला प्रतियोगिता की दौड़ से हो बाहर हो जाता है और वहीं 30 फीसदी अंक लेकर शीर्ष स्थान प्राप्त कर लेता है, यही कारण है कि आज देश की जो उन्नति होनी थी नहीं हो पायी, देश को जिन ऊंचाईयों में होना था वहाँ नहीं है | आरक्षण किसी का रक्षण तो नहीं है परन्तु देश का भक्षण जरुर कर रहा है |

जातिगत और धर्म आधारित आरक्षण देश का वर्तमान ही नही देश का भविष्य भी बर्बाद कर रहा है, भारतीय समाज शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार और वास्तविक उन्नति के स्थान पर आरक्षण के नाम की भीख एवं अतिक्रण की मानसिक गुलामी का जीवन यापन कर रहा है, जिसके कारण भारत में स्वस्थ समाज की कल्पना कभी भी नहीं की जा सकती और भारत जो विश्वगुरु बनने का सपना देख रहा है वो आरक्षण के चलते पूरा नही हो सकता, क्योंकि आरक्षण ने देश की प्रतिभा को कुचल कर रख दिया है, उसका सही से सदुपयोग नहीं हो पा रहा है | इसलिए अब समय आ गया है, भारत को उन्नति के शिखर तक ले जाना है तो आरक्षण को समाप्त करना होगा और देश में जाति-धर्म का माहोल ख़त्म कर विकासवाद का माहोल स्थापित करना होगा |

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