मां नही चाहती थी कि बेटी कुश्ती लड़े लेकिन, ड्रेस पसंद आई तो साक्षी बनी रेसलर

नई दिल्ली : महिला पहलवान साक्षी मलिक ने रियो ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल कर इतिहास रच दिया है। उन्होंने महिलाओं की फ्रीस्टाइल कुश्ती के 58 किलोग्राम भार वर्ग में भारत के लिए पदक जीता। ये रियो ओलंपिक में भारत का पहला पदक है। साक्षी ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान बन गई हैं।

इस दौरान साक्षी की मां ने बताया कि मैं कभी नहीं चाहती थी कि बेटी पहलवान बने। समाज में अक्सर यही कहा जाता रहा कि पहलवानों में बुद्धि कम होती है, पढ़ाई में पिछड़ गई तो कॅरिअर कहां जाएगा। यह बात हमेशा परेशान करती थी, लेकिन खेल में 6 से 7 घंटे प्रैक्टिस करने के बाद भी साक्षी ने पढ़ाई में 70 फीसदी मार्क्स लेकर इस बात को गलत साबित कर दिया। उसके कमरे में आज गोल्ड, सिल्वर व ब्रांज मेडल का ढेर लगा है।

पहली बार 15 साल पहले साक्षी को उनकी मां खिलाड़ी बनाने के लिए छोटूराम स्टेडियम लेकर गई थी। यहां कोच ने लड़की होने के नाते उसे जिम्नास्टिक खेलने के लिए कहा, मगर साक्षी ने साफ इंकार कर दिया। उसने एथलीट अंडर स्पोर्ट्स भी देखे, लेकिन कोई पसंद नहीं आया। कुश्ती हॉल में पहुंची तो यहां पहलवानों को कुश्ती ड्रेस में देखा। ड्रेस इतनी पसंद आई कि कुश्ती पर ही हामी भरी। इसके बाद साक्षी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और लगातार प्रैक्टिस से यह मुकाम हासिल किया है।

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