बुलंदियों का धुँआ पार कर

झूठी बुलंदियों का धुँआ पार कर के आ क़द नापना है मेरा तो छत से उतर के आ . इस पार मुंतज़िर हैं तेरी खुश-नसीबियाँ लेकिन ये शर्त है कि नदी पार कर के आ . कुछ दूर मैं भी दोशे-हवा पर सफर करूँ कुछ दूर तू भी खाक की सुरत बिखर के आ . मैं धूल में अटा हूँ मगर तुझको क्या हुआ आईना देख जा ज़रा घर जा सँवर के आ . सोने का रथ फ़क़ीर के घर तक न आयेगा कुछ माँगना है हमसे तो पैदल उतर के आ

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