कलियुग में महत्वपूर्ण है बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग

बुद्ध पोर्णिमा अर्थात् बुद्ध जयंती। यह वह दिन है, जब दुनिया को सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और शांति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। भगवान एक राजपरिवार में कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी नामक स्थान पर जन्मे थे। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन के घर उनका जन्म 563 ईस्वी पूर्व हुआ था।

मगर बचपन से ही अपने आसपास की घटनाओं को देखकर वे द्रवित हो जाया करते थे। बाद में युवा अवस्था में वे अपने परिवार पत्नी यशोधरा ओर शिशु राहुल को छोड़कर तप करने चले गए थे। वर्षों घोर साधना करने के बाद उन्हें बिहार के गया में बोधी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ।

ज्ञान प्राप्त होने के बाद उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। और उनके दुखों के निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। जिसमें अहिंसा पर अधिक बल दिया और पशु बलि की निंदा की। बुद्ध से प्रभावित अनुयायियों के फलस्वरूप बौद्ध धर्म अस्तित्व में आया। बुद्ध पोर्णिमा पर बौद्धिष्ट परिवार के लोग और बुद्ध अनुयायी विभिन्न बोधि स्तूपों, बोधि सत्वों और बौद्ध स्मारकों का पूजन करते हैं, इस अवसर पर भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है।

बौद्ध धर्म बाद में भारत से निकलकर चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका आदि क्षेत्रों में पहुंचा। आज भी इन क्षेत्रों में भगवान के अनुयायी बड़े पैमाने पर मिलते हैं। बुद्ध पौर्णिमा पर सभी अपने गुरूओं, भगवान बुद्ध और बौद्ध स्तूपों का पूजन करते हैं और बुद्ध की शिक्षाओं का स्मरण करते हैं।

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