डूबने से उबरने के लिए लग रही डुबकी!

भारतीय जनता पार्टी उत्तरप्रदेश में वर्ष 2017 के चुनाव के लिए तैयारी करने में लगी है। बिहार चुनाव में रणनीतिक गलतियों से सीख लेकर भाजपा इस चुनाव में एक वर्ष पहले से ही जातिगत समीकरणों को साधने में लगी है। यूपी की क्षेत्रीय राजनीति में राष्ट्रीय दलों के कमजोर होने का तोड़ तो भाजपा मोदी ब्रांड से निकाल रही है लेकिन इसी के साथ क्षेत्र के जातिगत और समाजिक समीकरणों को वह दबंग बनाम दलित और अल्पसंख्यक कार्ड खेलकर मजबूत करने में लगी है। वैसे भाजपा यह बात साफतौर पर समझ रही होगी कि यूपी में अल्पसंख्यक वोट बैंक एमआईएम और सपा के इर्द - गिर्द घूम रहा होगा मगर फिर भी वह इसे तोड़ने के प्रयास में है। बहरहाल जातिगत समीकरण को लेकर भाजपा अधिक सक्रिय नज़र आ रही है।

सत्ता में आने के बाद भारत रत्न डाॅ. भीमराव आंबेडकर को महत्व देना। उनके जन्मोत्सव पर बड़े आयोजन और स्मारकों के निर्माण की बातदर्शाती है कि वे दलित वर्ग के प्रमुख नेता को महत्व देकर अपना राजनीतिक हित साध रही है। यही नहीं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी पार्टी के चेहरे को दलितों के प्रति उदार बनाने में लगे हैं। हालांकि उन पर आरोप लगे हैं कि वे सिंहस्थ 2016 के तहत दबंग बनाम दलित का कार्ड खेलने में लगे हैं। तभी तो उन्होंने दलित संतों के साथ घाट पर स्नान करने की बात कही।

मगर विरोध के बाद यह आयोजन समरसता भोज तक सिमट गया। एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को ऐसे राज्य में जहां पर किसी तरह का जातिगत भेद राजनीतिक तौर पर चुनाव की दृष्टि से नहीं है वहां समरसता भोज का आयोजन क्या दर्शाता है। आखिर यह किस तरह का प्रयास है। साफतौर पर स्पष्ट है कि एक बड़े धार्मिक आयोजन के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी दलित वोट बैंक को साधने में लगी है।

धार्मिक नेताओं के माध्यम से अप्रत्यक्षतौर पर भाजपा राजनीतिक चाल चलने में लगी है जिससे विरोधी खेमा भाजपा पर दलितों की उपेक्षा का आरोप न लगा सके। दरअसल हरियाणा में दलितों की मौत के बाद भी केंद्र सरकार के मंत्रियों की गलतबयानी और इस पर मचे हंगामे ने भाजपा की किरकिरी कर दी। फिर कांग्रेस और अन्य दलों ने भी भाजपा पर दलितों पर ठीक से ध्यान न देने का आरोप लगाया।

ऐसे में भाजपा सिंहस्थ में अपने राजनीतिक पाप धोने का प्रयास कर रही है। अमित शाह के समरसता स्नान से संतों में भी एकमत नहीं है लेकिन इससे भाजपा उप्र के चुनाव के लिए अपना मार्ग आसान करने में लगी है।  स्नान और डाॅ. आंबेडकर के माध्यम से भाजपा अपना हित साधने में कितनी सफल होगी यह तो समय ही बताएगा। बहरहाल दलित मौतों और उसके बाद उलजूलूल बयानबाजी के साथ केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का भाजपा के वोट बैंक पर असर हो सकता है। 

'लव गडकरी'

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