बिना परिवार के दुखिया रोती

समन्दर में कुछ हीं सींप मोती होती बिना परिवार के दुखिया रोती होती . संबंधियों के संग खुशियाँ है जग में दुख और पीड़ा मेें जिंदगी खोती होती . सदैव मृत्यु होती नहीं किसी के वश में दुख का बोझ लिए जिंदगी ढोती होती . दुख और मृत्यु से लड़ना होता है यहाँ आँसुओं से आटा गूथ रोटी पोती होती . अगर वृद्धाश्रम में प्रेम फूल खिल जायें तो जगत केेे लिए प्रेम बीज बोती होती . जब अपना परिवार रहता हो विदेश में बुढिया अपने कपड़े खुद धोती होती . जब अपना लगे नहीं कोई इस जग में लगता है जैसे पूरी दुनिया सोती होती . परिस्थितियाँ पैदा कर जाती सुख दुख कोई तो आँसू में खुद को डुबोती होती . दुख दुखिया का जीवनसाथी बन जायें दुख-आँसुओं से सबको भिगोती होती . दुख को साथी बनाकर जीओ 'प्रकाश' दिल के अरमान दुख में संजोती होती

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