अपनी ही सास किसी और की लगती है मोहब्बत में जिंदगी यु पराई सी लगती है आज नहीं तो कल यह हसीन चाँद कही तो निकलेगा इसी उम्मीद में यह जमी दिन रत चलती रहती है तेरा अक्स खींचता रह गया में गजलो में न जाने कितने चेहरों में तू रोज मिलती है कोई इस पार से उस पार कैसे पहुंचे जब बीच समुन्दर में कश्ती से तू उतरती है