भूलकर आभाव की बातें

भूलकर आभाव की बातें , आओ बैठो करे लगाव की बातें ! लाखों ख्वाब बंधे नदी के पार , मगर , क्यों आ ही गई अब पड़ाव की बातें ! निकले घर से लोग मिलते गए हमे , छोडे थे हम , सिर्फ भेदभाव की बातें ! ढांचा बनाया था हमने लौह का , पर , बच्चे समझे बस कागज नाव की बातें ! हुई थी चन्द लम्हा बारिश अब तक , देखो छोटी नदीयों के बहाव की बातें ! जो मिले ना तुम्हे ना करो याद अब , कष्ट ही देंगी सिर्फ आभाव की बातें ! जाने क्या हुआ है लोगो को कुमार , करते है तुमसे सिर्फ दुराव की बातें !

Related News