'लक्ष्मी चालीसा' का पाठ करने से बरसेगी मातारानी की कृपा, नहीं होगी धन की कमी

दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्त्व है। इस दिन भक्त माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए पूरी आस्था से उनकी पूजा अर्चना करते हैं।  ऐसे में हम आपके लिए लाए हैं सम्पूर्ण लक्ष्मी चालीसा, जिसका नित्य पाठ करने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और आपके घर परिवार में सुख समृद्धि रहती है। 

दोहा

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास। मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥ सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार। ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥ टेक॥ सोरठा

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं। सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥ तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥

जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥ तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥ जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥ विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥ कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥ क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥ चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥ जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥ तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥ तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥ मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥ तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥ ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥

त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥ जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥ ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै। पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥ पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥ बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥ प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥ बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥ जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥ मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥ भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥ बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥ रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥ रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥ दोहा

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥ रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥

।। इति लक्ष्मी चालीसा संपूर्णम।।

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