बेफिक्री से फिकर का सफर

बेटी से मा का सफर  बेफिक्री से फिकर का सफर  रोने से चुप कराने का सफर  उत्सुकता से संयम का सफर  पहले जो आंचल मे छुप जाया करती थी  आज किसी को आंचल मे छुपा लेती है  पहले जो ऊंगली पर गरम लगने से घर को उठाया करती थी  आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया करती है  छोटी छोटी बातो पे रो जाया करती थी  आज बङी बङी को भी मन मे रखा करती है  पहले जो दोस्तो से लङ जाया करती थी  आज उनसे बात करने को भी तरस जाती है  मा कहकर पूरे घर मे उछला करती थी  आज मा सुन के धीरे से मुस्कराया करती है  10 बजे उठने पर भी जल्दी उठ जाना होता है  आज 5 बजे उठने पर भी लेट हो जाता है  खुद के शौक पूरे करते करते ही साल गुजर जाता था  आज खुद के लिये एक कपङा लेने मे आलस आ जाता है  पूरे दिन फ्री हो के भी बिजी बताया करते थे अब पूरे दिन काम कर के भी भी फ्री कहलाया करती है  साल की एक एग्जाम के लिये पुरे साल पढा करती थी  अब हर दिन बिना तैयारी के एग्जाम दिया करती है  ना जाने कब हमारी बेटी बच्चे की मा बन गयी  कब बेटी से मा के सफर मे तब्दील हौ गयी

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