बस प्यार कर मत शोर कर

घुप्प अंधेरे में सदा ही दिल की ऑखें खोलकर फिर इशारों के बिना रिमझिम हुआ जी खोलकर ।। चार दिन की चॉदनी फिर रात में क्या धूप होगी प्रश्नवाचक शब्द ले वह पूछती है बोलकर ।। होड दिन में लग रही वो दौडते बस दौडते हैं तुमको (प्रभु को ) हमने पा लिया अब क्या करेंगे तोलकर ।। विपरीत हैं मंज़र सभी पर साथ जब तक तू है मेरे हर थकन मिट जायेगी बस प्यार कर मत शोर कर ।। जोडकर बूंदों की दौलत पा लिया सागर को उसने वंदनीय सरिता जगत में ना तू उसका मोल कर ।।

Related News