राष्ट्रगान की रिंगटोन रखने पर लगी पाबंदी

ढाका : बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने देश के राष्ट्रीय गान को मोबाइल पर रिंग टोन बनाने पर पाबंदी लगा दी है। मोबाइल ऑपरेटर्स "बांग्लालिंक" और "ग्रामीणफोन" की अपीलों को निरस्त करते हुए चीफ़ जस्टिस एस के सिन्हा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने दो यह आदेश दिया। 2006 में वकील कालीपद मृधा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचित राष्ट्रीय गान "अमार सोनार बांग्ला आमी तोमे वालोबाशी" की पवित्रता को बनाए रखने के लिए इसके मोबाइल पर उपयोग पर पाबंदी लगाई जाए।

याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रीय गान अधिनियम- 1978 में यह साफ उल्लेख है कि कब, कहां और कैसे राष्ट्रीय गान को बजाया जा सकता है। रिंगटोन के तौर पर इसका इस्तेमाल क़ानून का उल्लंघन है। राष्ट्रीय गान का किसी भी तरह का वाणिज्यिक उपयोग मूलभूत अधिकारों और जनहित के खिलाफ़ है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हाईकोर्ट ने पांच साल पहले अपने फैसले में बांग्लालिंक, ग्रामीणफोन और अन्य मोबाइल ऑपरेटर्स को तीन चैरिटी संगठनों को 50-50 लाख रुपये टका देने का निर्देश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस राशि को घटा कर 30-30 लाख रुपये कर दिया। याचिकाकर्ता के वकील मसूद अहमद सईद ने कहा कि तीनों मोबाइल ऑपरेटर्स को एक महीने के अंदर चैरिटी संगठनों को 30-30 लाख टका देने होंगे। हालांकि हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद ही मोबाइल ऑपरेटर्स ने रिंगटोन के तौर पर राष्ट्रीय गान का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था।

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