बदलते बादल की बहार आई है

बदलते बादल की बहार आई है फिर से सावन झूम के आई है। उमड़ घुमड़ कर बादल बरसा चहु दिशा में नव हरयाली परसा। वन उपवन में नन्हे पौध उगे है प्रकृति मन में नए अरमान जगे है। किट पतंगे चहु ओर उड़ रहे है नीर नित नए नए धाराये जुड़ रहे है। उमड़ घुमड़ रही काली बदरा चहु ओर खेतो में फैली अकरा। उम्मीदों की नई फसल लगी है चहु ओर देखो हरियाली सजी है। घर में सज रहे है बैल और हल खेतो में बरसा बरस जाये जो कल। ले उम्मीदों की अब नयी फसल मिट्टी को रहा हाथो से मसल। उत्तम बीज और खाद तलासे मिट्टी और पत्थर खेतो में तरासे। धरती को चीर हम बीज लगाये माँ के आँचल में सोना उगाये।

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