बातें खत्म बस रिश्ता रह जाता है

मलाल ए जीस्त क्यों रह जाता है , जुंबा खामोश अश्क कह जाता है ! बंद किए मुफ़लिस ने पीरे -ए- कस्र , दीवारे गिर गई आँगन रह जाता है ! समय हुआ टूटा साख से अपने वो , टूटने का दर्द भी पत्ता सह जाता है ! निजात पाकर भी चला गया साकी , अपना ही अब पराया कह जाता है ! ना हुआ था नभ अब तक खामोश , बरस कर खुद प्यासा रह जाता है ! करते है खून पसीने अदब की बात , बातें खत्म बस रिश्ता रह जाता है ! हुए थे कुमार भी रोजमर्रा से परेशां , देखकर तुझे मेरा दुःख बह जाता है !

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